रविवार, 15 अगस्त 2010

बाऊजी : एक स्वयंनिर्मित व्यक्तित्व
( श्री  अचल  दासजी  बोहरा )  


आज मेरे बाऊजी ( दादाजी ) की पैंतीसवीं पुण्यतिथि है. लेकिन वे आज भी हम सब के बहुत करीब है. उनकी यादें आज भी हम सब के जहन में ताजा है. आज भी वे हमारे परिवार के प्रेरणास्त्रोत बने हुए हैं. आज हमारा परिवार जहाँ है वो उनके त्याग और योगदान की वजह से ही है.
मेरे दादाजी यानी कि बाऊजी, एक स्वयं निर्मित व्यक्ति थे. आज उनकी पैंतीसवीं पुण्यतिथि है. जब मैं उन्हें याद करता हूँ , उनके बारे में सोचता हूँ तो मुझे खुद पर फक्र महसूस होता है कि मैं उनके परिवार से हूँ. उन्होंने अपने जीवन में जितना संघर्ष किया वो अतुलनीय है. उनके पिता यानि कि मेरे परदादा भजन-कीर्तन में व्यस्त रहते थे. कोई काम उनके पास नहीं था. उस वक्त हमारा परिवार एक बहुत ही साधारण श्रेणी का था. जब मेरे बाऊजी दो साल के थे तो उनकी माँ स्वर्गवासी हो गई. बाऊजी को उनके अन्य रिश्तेदारों  ने पालना पोसना आरम्भ किया. बाऊजी अत्यंत ही मेधावी छात्र थे. उन्हें पांचवीं कक्षा से वजीफा यानि कि स्कोलरशिप मिलनी शुरू हो गई. उन दिनों जोधपुर नरेश की तरफ से ये वजीफे मिला करते थे. जब बाऊजी सातवीं कक्षा में आए तो उन्होंने पांचवीं तक के कुछ छात्रों को पढाना शुरू किया जिससे कि कुछ अतिरिक्त आय हो सके. इसी तरह बाऊजी ने दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की. इसके बाद आगे की शिक्षा उन्होंने बीकानेर से की. उन दिनों इंटर परीक्षा होती थी. इंटर उत्तीर्ण करने के बाद बाऊजी बीकानेर में ही एक स्कूल में अध्यापक लग गए. उन्हें बचपन से जो पढ़ाने का शौक पैदा हुआ था वो अब पूरी तरह से परवान चढ़ चुका था. इसी दौरां वे वोलिबोल के एक अच्छ एखिलादी बन गए थे. वे नेट पर ही खेला करते थे.  दो साल के बाद बाऊजी के एक रिश्तेदार ने उन्हें रेलवे में तार बाबू की भर्ती की बात बताई. बाऊजी को ये बात जाँच गई और वे तार बाबु की ट्रेनिंग में लग गए. जल्दी ही वे रेलवे में नियुक्त हो गए.


















धीरे धीरे समय गुजरता चला गया और बाऊजी तरक्की पर तरक्की करते चले गए. बाऊजी अपने कार्यकाल में भदवासी, रामसर, उदयसर, मुनाबाओ और अंत में पचपदरा साल्ट डेपो में रहे. १९६3 में उनकी पदोन्नति स्टेशन मास्टर के पद पर हुई और वे पचपदरा साल्ट डेपो चले गए. बाऊजी बहुत ही अनुशासन प्रिय थे. पचपदरा साल्ट डेपो में उनके आठ साल के कार्यकाल में कोई भी छोटी दुर्घटना तक नहीं हुई और इसीलिए उन्हें रेलवे ने सम्मानित किया था. 
उन दिनों पापा बी कॉम में पढ़ रहे थे. १९६४ में पापा का विवाह हो गया. छोटी उम्र में  विवाह हुआ था इसलिए मेरी दादी ( बा )  को बाऊजी ने जोधपुर रहने के लिए भेज दिया जिससे कि पापा के अध्ययन में कोई अड़चन ना आए. ये बाऊजी के एक बहुत बड़ा त्याग था. वे करीब करीब अकेले ही रहे और पापा की पढ़ाई आगे बढती चली गई. १९६७ में पापा जोधपुर पुष्करणा समाज में पहले चार्टर्ड अकाऊंटेंट बन गए. आज मैं केवल ये अंदाजा लगा सकता हूँ कि उस वक्त बाऊजी को कितनी ख़ुशी हुई होगी. उनका त्याग रंग लाया था और पापा की मेहनत.
बाऊजी मितव्ययता के सिद्धांत पर चलते थे. उनका यह मानना था कि महंगाई और बढ़ते खर्च पर इंसान चाहे तो खुद ही काबू पा सकता है. उसे अपने खर्चे अपने बस में रखने चाहिये. जितनी न्यूनतम आवश्यकता हो उतना ही खर्च करे तो महंगाई भी कुछ नहीं बिगाड़ सकती. मैंने उनके पास कभी भी पांच जोड़ी से ज्यादा कपडे नहीं देखे. लेकिन जब वे बाहर निकलते तो कोई ये अंदाज़ा नहीं लगा सकता था कि इस व्यक्ति के पास केवल पांच जोड़ी कपडे ही हैं.

बाऊजी श्रीकृष्ण के ग्वाल रूप को बहुत मानते थे और उसी के ऊपर लिखे गए भजन गुनगुनाते थे. गंगश्यामजी  के मंदिर वे जब भी जोधपुर में होते तो नियमित रूप से जाते. मैंने हालाँकि केवल ग्यारह साल की उम्र में ही उन्हें खो दिया लेकिन उन्होंने मुझे बहुत कुछ सिखाया. परिवार के मुखिया को क्या क्या त्याग करने चाहिये? मुखिया के क्या क्या फ़र्ज़ होते हैं? उसे कितना सहन करना चाहिये? और भी ना जाने कितनी ही शिक्षाएं वे देते रहते थे. आज जब हम समाज में एक ही घर के लोगों में बढती दूरीयों को देखता हूँ तो मुझे बाऊजी बहुत याद आते हैं. उनकी सीख बहुत याद आती है. उनके सिद्धांत बहुत याद आते हैं.
बाऊजी को अपने इकलौते पुत्र यानि कि हमारे पापा पर बहुत गर्व था. जब लोग उन्हें कहते कि आपका बेटा समाज का पहला सी ए बना है तो उन्हें अन्दर तक ख़ुशी महसूस होती और चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कान दौड़ जाती. उनका स्वभाव बहुत ही शांत था. वे बहुत कम बोलते थे. वे गांधीजी के उस वाक्य को अमृत-वाक्य मानते थे जिसमे गांधीजी ने कहा था कि " बहुत कम बोलो. अगर एक शब्द से काम चल सकता है तो दो भी नहीं." आज ऐसी बात कोई नहीं सोचता.
मैंने उनके साथ जो कुल मिलकर पचपदरा में सात साल बिताये जो शायद मेरा स्वर्णिम समय था. जो शिक्षा उन्होंने मुझे दी वो मेरे लिए एक धरोहर से कम नहीं है. बाऊजी नियमित रूप से योगासन करते थे. रिटायरमेंट के बद में आखिर तक उनका शरीर एकदम फिट था.
हमारे बाऊजी हमारे प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे. उह्नें हम सभी परिवारवालों का शत-शत नमन. बाऊजी हर जनम हम आपके ही परिवार में जनम लेंगे और अपने जीवन को धन्य बनायेंगे.