सोमवार, 10 मई 2010

यादों का झरोखा - भाग १ 

घटनाकाल - जुलाई १९८१
स्थान - जोधपुर ( राजस्थान ) मेरी जन्म-भूमि

उस वक्त मैं  लाचु कॉलेज में बी एस सी प्रथम वर्ष में था और अपनी बुवा के यहाँ रह रहा था जो कि मेरे पैतृक मकान से दूर था. मेरी दादी के अचानक देहांत के बाद मैं वहां रहने चला गया था. मेरे पापा उन दिनों मुंबई थे. जुलाई का महीना था. हमारा  शहर जोधपुर गर्मी से झुलस रहा था. इस गर्मी के समय में एक शीतलता का अहसास हुआ जब मेरे एक दोस्त ने मुझे अपने मामा के लड़के की शादी का निमंत्रण देते हुए कहा कि दो दिन बाद ही शादी है और मुझे हर हाल में शामिल होना है. 
शादी का नाम सुनते ही मेरे मुंह में पानी आ गया. सोचा चलो अच्छा है शादी के खाने में ढेर सारे पकवान खाने के लिए मिलेंगे. उन दिनों मेरी उम्र  सत्रह साल की थी इसलिए केवल शादी की दावत से ही मुंह में पानी आ गया. 

नियत समय पर बरात में शामिल हो गया. बरात चल पड़ी. चलते चलते बरात मेरे ही मोहल्ले में पहुँच गई. मैं थोडा चौंका. लेकिन मेरे दोस्त ने बताया  वहां की स्कूल लड़की वालों ने विवाह के लिए किराये पर ले रखी है.  इसलिए मुझे ज्यादा पता नहीं चला. लेकिन जब मैंने दुल्हन को देखा तो मेरे होश उड़ गए. वो मेरी ही गली में रहनेवाली एक लड़की थी. हमारे घर के उस घर के साथ बहुत घरेलु सम्बन्ध रहे थे शुरू से ही और मैं उसे बहन के सामान मानता था.  अब मुझे अपने आप पर कुछ अजीब तरह से गुस्सा आ गया कि  एक तरह से वो मेरी बहन है और मैं उसी के घर में बाराती बनकर आ गया हूँ. मैंने यह बात जब मेरे दोस्त को बताई तो उसने एक शरारत भरी नजर मुझ पर डाली और बोला " अब होश क्यूँ उड़ गए बाराती महोदय ! तब तो तू बड़ा ही जोश में था कि जबरदस्त खाना खायेंगे. अब क्या हो गया! अब तू एक काम कर लडकी वालों में जाकर मिल जा और हम सब की अच्छी तरह से आवभगत कर." उसके इन आखिरी शब्दों को सुनकर मुझे कुछ सुझा और मैं तुरंत उस लडकी के पिता, जिन्हें मैं ताउजी कहता था, मिला. वे मुझे देखकर बहुत खुश हुए.  इसके बाद मैंने लडकी वालों की तरफ से बारातियों  की आवभगत की. बाद में मैं अपने दोस्तों के साथ शामिल हुआ और खाना खाया. लेकिन रह रहकर मुझे अपने किये पर अफ़सोस होता रहा. मेरे अन्य दोस्त मुझे काफी देर तक चिढाते रहे और मैं शरमाते हुए चुपचाप खाना खाता रहा.
आज भी जब मुझे वह घटना याद आती है तो हंसी आ जाती है कि कैसे मैं निमंत्रण मिलते ही खुश हुआ था और लडकी को देखते ही किस तरह होश उड़ गए थे. हम दोनों दोस्त आज भी एक दुसरे के संपर्क में है और कई बार इस घटना को याद कर मुस्कुराकर रह जाते हैं.
यही तो जिंदगी है जो हम हमारे यादों के झरोखों से अक्सर देखा करते हैं.
लेकिन अफसोस ये है कि अब पहले जैसा ज़माना नहीं रहा और यही कारण है कि पुरानी बातें ज़िन्दगी के ज्यादा करीब लगी हुई महसूस होती है. काश इस तरह का वक्त हमेशा रहा पाता. लेकिन हकीकत को स्वीकारना पड़ता है और वर्तमान में ही जीना पड़ता है.

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