सोमवार, 14 दिसंबर 2009

इल्म नहीं था इतनी जल्दी खत्म फसाने हो जायेंगे
आप यूँ   अचानक चल  दोगे  हम देखते  रह जायेंगे 




८ सितम्बर के दिन जब शाम को पापा हमें अचनाक हमेशा हमेशा के लिए छोड़कर चले गए तो दिल रुक गया. दिमाग सुन्न हो गया. जो भी था सब वहीं रुक गया. हमने कभी कल्पना नहीं की थी कि यह दिन हमारी ज़िंदगी में इतनी ज़ल्दी आ जाएगा. एक विशाल बरगद से भी कहिनाधिका घना साया जो आज ताका हमारे ऊपर रहता आया था इसा तरह से अचनाक उठ जाएगा. उस दिन शायद भगवान ने भी हमें धोखा दे दिया. अब भगवान की शिकायत किस से करें. उस दिन भगवान ने हमारी सारी प्रार्थनाएं अनसुनी करा दी और हमारे पापा को हमसे छीन लिया. उसके इस फैसले को हमें स्वीकारना पड़ा. इसके सिवा हमारे पास कोई  और  चारा भी तो नहीं था.
जिनके बिना हमारी अब  तक की ज़िन्दगी का एक भी दिन नहीं बीता था अब उनके बिना हमें सारी ज़िन्दगी बितानी है.


कर्मयोगी - हमारे पापा एक सच्चे कर्मयोगी थे. उन्होंने कभी फल की कामना नहीं की. कर्म को ही अपना जीवन माना. उनहोंने कभी किसी से कोई उम्मीद नहीं रखी. वो हमेशा यह कहते थे कि यह कलियुग है. अगर कोई अपने साथ आकर खड़ा हो जाये तो यही उसका योगदान बहुत बड़ा होगा. किसी से कोई उम्मीद मत बांधो. अपने कर्म किये जाओ और अपनी काबलियत  पर भरोसा रखो. अगर हम में काबलियत है और कर दिखाने की हिम्मत है तो केवल भगवान पर भरोसा रखो. तुम्हारा कभी बुरा नहीं होगा.  वो हमेशा कहते थे कि कोई अगर कभी  धोखा दे दे तो दुःख मत करो क्यूंकि  कलियुग में सब संभव है. कोई भी कभी धोखा दे सकता है. हमेशा दूसरा रास्ता तैयार रखो. कभी भी किसी पर पूरी तरह से आश्रित मत रहो.   जो जितना साथ दे दे उसी को अपनी खुशनसीबी समझो. अपनी तरफ से हर किसी का भला करते रहो तो तुम्हारा कभी कोई बुरा नहीं कर सकेगा. उन्होंने कभी किसी से के पास जाकर कोई काम नहीं माँगा. वो जो भी कुछ अपनी ज़िंदगी में बने केवल अपने बल बूते पर बने. अपने परिवार में  किसी और को संघर्ष ना करना पड़े इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़कर प्रेक्टिस आरम्भ की और एक सफल सी ए की फ़र्म खडी कर दी.
वे सभी से निस्वार्थ प्रेम करते थे. अपने हर रिश्तेदार के लिए उनके दिल में बहुत प्यार और स्नेह था. सभी लगातार संपर्क बनाये रखने में उनका कोई सानी नहीं है. हर रविवार को सवेरे सात बजे से नौ बजे तक वो लगभग अपने हर मित्र और रिश्तेदार से तमाम जानकारीयाँ ले लेते और सारी जानकारीयाँ दे देते. वे हमेशा हम से कहते थे कि मैंने जो संपर्क-सूत्र बनाए हैं तुम केवल उसे अपनाए रखना. तुम्हे कभी कोई कमी महसूस नहीं होगी. आने वाला समय बहुत खराब आनेवाला है. जिस तरह से पुराने लोग रिश्तेदार और मित्र रिश्तों की गहराईयों को समझते हैं और निभाते हैं; आनेवाली पीढ़ी इस तरह से नहीं निभा सकेगी. जो रिश्ते बरसों पुराने हैं वे ही बरसों तक निभेंगे. 
कोई उनके लिए क्या कर रहा है वे इसकी चिंता या परवाह कभी नहीं करते थे और उसके लिए जो बन सके वो करते रहते थे.

सिद्धांतवादी - हमारे पापा अपने सिद्धांतों को कड़ाई से अपनाते थे. उनका यह मानना था कि अगर कोई समय समय पर हालातों से समझौता करते हुए अपने सिद्धांतों को बदल दे तो फिर कोई सिद्धांत बनाए ही क्यों. कुछ सिद्धांत ऐसे होने चाहिये जिस पर इंसान सारी उमर  कायम रहे. अपने सिद्धांतों पर समझौता उन्हें मंज़ूर नहीं था. वो कई बार छोटी से छोटी बात पर यह कह देते कि " बात कितनी छोटी है या कितनी बड़ी, यह मायने नहीं रखती. बात सिद्धांत की होनी चाहिये. ऐसे कई वाकये हुए जब पापा अपने सिद्धांतों पर चट्टान की तरह डटे रहे और कोई समझौता ना करते हुए सफलता प्राप्त की.

आज हमें उनकी बहुत कमी खलती है. हम सब की जिंदगी अधूरी महसूस होती है. हम उनकी उपस्थिति हर वक्त घर में महसूस करते हैं. हम खुशनसीब है की हम उनके पुत्र बनकर इस दुनिया में आये.भगवान् हर जनम हमें इन्हें ही हमारे  माता - पिता बनाये.

नरेश धर्मेश राजेश बोहरा